तुझसे जो बिछड़े तो...
तुझसे जो बिछड़े तो...
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एक बार तुझसे जो बिछड़े तो बिछड़ ही गए,
ना जाने फिर इधर, उधर गए या किधर गए !
दिन जो बीते तुझ बिन उन्हें दिन समझा नहीं,
बिछड़कर मेरे यारा, तू मुझे फिर से मिला नहीं !
शाख़ से गिरे पत्ते की मानिंद कहीं उड़ गया,
अब ढूंढ़कर परेशान हूँ मैं कि कहाँ फुर्र हो गया!
अब तो हर मौसम अधूरा सा लगे उनके बगैर,
हमें बताकर ना गए, क्या हम हो गए इतने गैर!
अबके जो आए मिलने तो कतई ना जाने देंगे,
अपनी इस धानी चुनरिया में बांधकर रख लेंगे!