मैं नारी नदी सी मेरे दो किनारे
मैं नारी नदी सी मेरे दो किनारे
मैं नारी नदी सी मेरे दो किनारे।
एक किनारे ससुराल, दूजी ओर मायका
दोनों मेरे अपने फिर भी अलग दोनों का जायका।
एक तरफ मां जिसकी कोख का मैं हिस्सा ।
दूजी ओर सास जिनके लाल संग जुड़ा मेरे
जीवन भर का किस्सा
एक तरफ पिता, जिनसे है अपनत्व की धाक।
दूजी ओर ससुरजी जिनकी हैं सम्मान की साख।
मायके का आँगन मेरे जन्म की किलकारी
ससुराल का आँगन मेरे बच्चों की चिलकारी
मायके में मेरी बहने , मेरी हमजोली
ससुराल में मेरी ननदे है, शक्कर सी मीठी गोली।
मायके में मामा, काका है पिता सी मुस्कान
ससुराल के देवर जेठ हैं तीखे में मिष्टान।
मायके में भाभी है
ममता के खजाने की चाबी,
ससुराल में देवरानी जेठानी
हैं मेरी तरह ही बहती नदी का पानी।
मायके में मेरा भईया
एक आस जो बनेगा दुख में मेरी नय्या
ससुराल में मेरे प्राणप्रिय सैया
जो हैं मेरे जीवन के खेवैया।*
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ससुराल ओर मायका हैं दो नदी की धारा
जो एक नारी में समाकर नारी को बनाती है सागर सा गहरा।