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Supriya shanu

Others

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Supriya shanu

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एक खत

एक खत

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पापा बड़े दिन बाद एक खत लिख रही हूं।

मैं आपको यहां से खबर दे रही हूं

धीरे धीरे मैं भी बड़ी हो गईं हूं

अब रूठती नही, ना बहस करती हूं।

बस चुप होकर सबकी बात सुनती हूं।


ख़ामोश भरी नजरों से आपको तलाशती हूं

पता है, मुझे अब मुलाकात मुमकिन नहीं

फिर भी उम्मीद की लौ लगाए बैठी हूं

पापा बड़े दिन बाद एक खत लिख रही हूं


अब पहले जैसी ये दुनियां नही रही

यहां लोगों पर एतबार सोंच समझकर करती हूं

अब नही बहकती किसी की बातों में

अब न मैं किसी पर भरोसा करती हूं

पापा बड़े दिन बाद एक खत लिख रही हूं


मम्मी को याद बहुत आती हैं,आपकी

जब भी बात होती है, आंखे भीग जाती है

फिर आपकी मुस्कुराहट को याद करती है

फिर नए सबेरे की शुरुआत करती है

पापा बड़े दिन बाद एक खत लिख रही हूं।


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