जीवन का आधार
जीवन का आधार
धरा कर रही है क्रंदन
और
बारंबार करती है पुकार
सुनो, ऐ मानव !
ना काटो तुम वृक्षों को
हैं ये
धरा का श्रृंगार,
ना हो गर ये
तो ना रहेगा पर्यावरण शुद्ध।
होंगी बस
चहुँ ओर आपदाएँ
फिर
ना रहोगे तुम, ना कोई जीव
क्योंकि
ये वृक्ष हैं हमारे जीवन का आधार।