प्रकृति फिर मुस्कुराने लगी है
प्रकृति फिर मुस्कुराने लगी है
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कोहरे के हटने से
धुँध के छँटने से
हो रहा एहसास फिर
मौसम के बदलने का,
महक़ रही है बयार
नव कोंपले फूट रही हैं
शाखाओं पर नव-पात
मुस्कुराने लगे हैं,
पंछियों के कलरव से
वन-उपवन और चहुँ दिशाएँ
गुनगुनाने लगी हैं।
हाँ,
हो गया है आगाज़
बसंत के आने का,
प्रकृति का कण-कण
मुस्कुराने लगा है।
