पत्ता
पत्ता
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आँगन में
आज सवेरे
कुछ पत्ते गिरे थे
प्रकृति प्रेम में डूबी मैंने
हथेली पर उन्हें रखकर
उनकी ख़ूबसूरती को
देखा गौर से तो
मुस्कुराकर बोले वे
क्या हम
तुम्हारे साथी बन सकते हैं
हैरान थोड़ा हुई मैं
वाणी उनकी सुनकर
बोले कुछ ऐसा कर दो
ना व्यर्थ हो जीवन हमारा
वात्सल्य धरा का फिर पाकर
ख़ुशियों को हम पा जाएँ
सुनकर उनके बोल
मैंने वृक्षों तले
उनको प्यार से रखा
मुस्कुराए वे यूँ
ज्यों
माँ की गोद पाकर
नव जीवन उन्होंने पाया।