कर्म
कर्म
ऐ मानव !
पाया जो तुमने
यह मानव चोला
करो कर्म भी मानवता का
रखकर ध्यान।
नहीं साथ जाएगी तुम्हारे
धन और दौलत
जाएँगे बस
कर्म सच्चे और अच्छे।
जो बोओगे वही पाओगे
भग्वद्गीता का भी है ज्ञान यही
छल - कपट, ओहदे का अहंकार
सब धरा रह जाएगा,
बुरे कर्मों का दंड भोगने
पारिवारिक प्राणी और संगी साथी
कोई नहीं संग तुम्हारा निभाएगा।
है जो समय यह क्षणभंगुर - सा
तो अभी सुधर लो,
कर्म अपने निःस्वार्थ होकर
ईमानदारी से कर लो
हाँ, तभी तुम्हारा मानव जीवन
सफल हो पाएगा।
