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Harish Bhatt

Tragedy

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Harish Bhatt

Tragedy

गलियां

गलियां

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शहर की तंग गलियों में

ढूंढता हूं एक आशियाना

क्योंकि गांव छोड़ चुके अब

जानता हूं नहीं मिलेंगे मुझे

खेत-खलियान और पगडंडी

और सुबह शाम की ताजी हवा

आपाधापी भरी शहर की जिंदगी में

नहीं होगा कभी खुलेपनन का एहसास

घुटते माहौल में आगे निकलने की होड़

ना सुनाई देगा पक्षियों का कलरव

ना ही खिलखिलाएंगे पौधों पर फूल

ना जाने क्यों शहर की तंग गलियों में

तलाश करता हूं सपनों का आशियाना

जानता हूं मैं फिर भी ना जाने क्यों

कंक्रीट के जंगल में पौधा लगाता हूं

प्रकृति से दूर सुकून की तलाश में

आखिर मिलेगा क्या शहर की तंग गलियों में।



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