दुल्हन बन दुख भोग रही हूँ
दुल्हन बन दुख भोग रही हूँ
दुल्हन बन दुख भोग रही हूँ,
मुझे बुला लो पापाजी।
पड़ा- लिखा जो लड़का देखा,
वो सनकी निकला पापाजी।
दिन भर चौका-चूल्हा देखूं,
ना सांस ले सकूँ पापाजी।
हरदम कमियां सास निकाले,
दिल घबराता पापाजी।
अब ससुराल में दम घुटता है,
मुझे बुला लो पापाजी।
इन सबकी चिक-चिक बाजी से,
अब तंग आ गयी पापाजी।
मेरी डिग्री धूल खा रही,
अरमान टूट गये पापाजी।
रोज नये पकवान बनाती,
किसी को कुछ नहीं भाता है।
पति निठल्ला को खाने की,
बस थाली फेंकना आता है।
पीतल को हम सोना समझे,
धोखा हो गया पापाजी।।
राहत की अब सांस ले सकूँ
जल्दी बुला लो पापा जी ।।