सहस्र वनिता
सहस्र वनिता
उस जोहर का भी मतलब है,
जिसमें न्योछावर एक युग है।
अवनीश के एक महीसुर का,
कुंठित मन का घटिया छल हैI
निर्लज्ज, हठेली, छुद्र एक,
वह राघव चेतन भूसुर था।
जिसने ठाना क्षय राजन का,
यह बेमतलब कैसा प्रण थाI
दानव दल का आघात देख आघात
वो बचा गई पतिव्रत का चित्र।
वपु निर्मल आबगीन जैसा,
वो पावन मन भी था विचित्र।I
स्वर्णिम अक्षर वर्णन करते,
परित्याग, निडरता, पावनता।
आहुति बनकर अग्निकुंड में,
अमर हो गई सहस्र वनिता।।
