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Arunima Bahadur

Action

4  

Arunima Bahadur

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क्या बन गए सहते सहते

क्या बन गए सहते सहते

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बना दिया बस सबको मोहरा,

चंद स्वार्थी चेहरों ने,

टूटी सांसे, सिसकती बेटियां,

पर सेकते सब राजनीति की रोटियां,

भूख से बिलखती गरीबी,

छिन गयी सबकी रोजी रोटी,

चुनावी रैलियां,

कोरोना प्रोटोकॉल की उड़ती धज्जियां,

कहाँ ले आये ये मौन हमें,

खामोशी कभी तो टूटेगी,

विचारो की क्रांति जागेगी,

तोड़ना होगा हर असत्य का दर्पण,

जगाना होगा खुद अब तो,

बदल जरा अब खुद की सोच,

करना कुछ अब धरा को अर्पण,

वरना मिट जायेंगे हम सब भी,

टूटा जो अंतस का दर्पण,

मत पूजो तुम देवी को,

जब देवी का सम्मान नहीं हैं,

मत करो प्रतिष्ठित मंदिरों में,

जब मन मंदिर में स्थान नहीं हैं

लुटती अस्मिता, उजड़ती कोख,

क्या ये देवी का अपमान नहीं हैं?

तो जाग जरा, अब सोचना ही होगा,

है कष्ट का हल, खोजना ही होगा,

तभी बदलेगा ये जहाँ,

तब ही परिवर्तन होगा,

यही होगा प्रज्ञावतार,

यही महाकाल का नर्तन होगा।।


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