देश के गौरव-धरतीपुत्र
देश के गौरव-धरतीपुत्र
कभी सुनते थे कहानी गाँव की
पुराने बूढ़े नीम की छाँव की
हरे भरे खेत खलियानों की
देश के मेहनतकश किसानों की
धूप भी खुशगवार लगती थी
तब हल चलते थे बुवाई होती थी
मिट्टी से सोंधी महक उठती थी
जब झर झर वर्षा झरती थी
आओ नज़र डालें
हालत पर उस महान की
अपने देश के गौरव
धरती पुत्र किसान की,
खुद दुनिया की भूख मिटाने वाला
दो वक़्त की रोटी कहाँ पता है
रूखा सूखा खाकर घर से निकले
वो कड़ी धूप में पसीना बहाता है
जो पोषित करता
अपने बल पर सबको
आखिर अपने हिस्से क्या पाता है,
आओ नज़र डालें
हालत पर उस महान की
अपने देश के गौरव
धरती पुत्र किसान की,
दिन रात लड़ रहा दयनीय अवस्था से
फिर भी धरती पर सोना उगाता है
न देखे जेठ की चिलचिलाती धूप
न माघ की ठण्ड में किटकिटाता है
कब परिश्रम किसान सा कोई कर पाया
कौन धैर्य उन सा...रख पाता है
आओ नज़र डालें
हालत पर उस महान की
अपने देश के गौरव
धरती पुत्र किसान की,
कभी लड़ता अकाल की मार से वो
कभी बाढ़ में खुशियाँ बहाता है
कभी कर्ज के बोझ तले दबता तो
आत्महत्या की राह अपनाता है
आधुनिकता की बलि अब चढ़ रहा
अपने वजूद की खातिर लड़ रहा
जहाँ खेत थे वहां दिखने लगे मकान
कैसे कहलायेगा भविष्य में वो किसान
आओ नज़र डालें
हालत पर उस महान की
अपने देश के गौरव
धरती पुत्र किसान की,
