छोड़ कर इन्हें
छोड़ कर इन्हें
छोड़ कर इन्हें दूर हो गए
शहर की चकाचौंध में गुम हो गए
यह बस्ती थी यारों की यारो
इसकी हस्ती कहां खो गई यारो
यहां कोई नहीं जो पुकारे
यहां कोई नहीं जो दुलारे
बस चंद हैं चार दीवारें
कभी रहती थीं यहां बहारें
सूना आंगन है और चौबारे
सूनी गलियां हैं और गलियारे
ना ही कटती पतंगों का शोर
ना गलियों में बच्चों की दौड़
ना पूजा की घंटियों का शोर
ना चौपाल पे बातों का दौर
सूने हो गए सावन के झूले
बस अंबुया की डाली ही झूले
सब याद करके मेरा मन डोले
कोई प्यार के दो बोल बोले।