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Kusum Kaushik

Tragedy

4  

Kusum Kaushik

Tragedy

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते......

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते......

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 वाह बहुत अच्छी सूक्ति है, लिखी रहती है ग्रंथों, किताबों के पन्नों पर,

दीवारों पर, तख्तियों पर, पट्टियों पर,

विद्यालयों की, दफ्तरों की, रेलवे स्टेशनों की और पब्लिक प्लेसों की,

और असर भी पूरा है इसका इस समाज पर।

 

पूजी भी जाती है नारी घूंसों से, लातों से, डंडों से, लाठियों से, गन्दी-गन्दी गालियों से,

चमड़े की बेल्टों से, गर्म ईस्त्री से और बीड़ी-सिगरेट के अधपिये टोटों से।

घरों में, बाजारों में, खेतों में, खलिहानों में, बसों में, विद्यालयों में,

मंदिरों में, अस्पतालों में, दफ्तरों में और सड़कों पर भी।

 

और देखो तो वहीं होते हैं वो देवता भी जो पूजते हैं उनको

कभी बाप, कभी भाई, कभी मौसा, कभी फूफा, कभी मामा भी,

कभी बॉस, कभी सहकर्मी, दफ्तरों के बाबू व्

अधिकारी और सर्वाधिक उसका पति।

 

तोड़े जाते हैं कभी हाथ-पैर-मुँह-दांत,

गर्भ तक गिरा दिए जाते हैं मार कर कभी लात

फोड़ा जाता है कभी सर, घसीटा जाता है बालों से

और दबा दिया जाता है कभी तो गला तक

ऐसी पूजा के बाद कुछ छोड़ कर दुनिया का मोह

कूद जातीं हैं घरों की छतों से, चलती रेलों से,

लगा लेतीं हैं नदियों में छलांग, काट लेतीं हैं नसें,

खा लेतीं हैं जहर, लटक जातीं हैं फांसी,

और लगा लेतीं हैं आग।

 

कुछ तो ख्याल करतीं हैं दुनिया का, अपने माँ बाप का,

प्यारे फूल से बच्चों का, दोनों परिवारों का,

वो रोज पिटती हैं और सब सहती हैं फिर भी जीतीं हैं

इतने पर भी मुँह से कुछ न कहतीं हैं।

मजबूर होतीं हैं मांजने को औरों के जूठे बर्तन, गोबर-कपड़ा-झाड़ू-पोंछा करने को,

यहाँ तक की “कॉल गर्ल” बनने को।

 

हर रात एक नए सबेरे की आस में सोतीं हैं और सुबह फिर उसी राग में जीतीं हैं,

पत्थर सा तोड़ अपने तन को, पथिकों के लिए सड़क सी बिछ्तीं हैं, मरतीं हैं, जीतीं है,

पता नहीं क्यों? रोज मर-मर कर जीतीं हैं,

दिन भर मशीन सी चलतीं हैं, रो-रो कर अपने में ईंधन भरतीं हैं।

 

 जो जीतीं हैं वो स्वयं को समझाकर अग्रिम तैयारी करतीं हैं

कोई बच्चों का मुख देखती है तो कोई प्रारब्ध को कोसती है

और कहती है जब तक न ये कटेगा तब तक तो झेलना ही पड़ेगा

कभी तो मेरे आँगन में भी सुख का सूरज उगेगा और मेरे भी संताप हरेगा

 

और देखो इस तरह मिसाल बनती है अपने पर कवित्त करती है, करवाती है

और फिर यही सूक्ति बनकर दीवार पर पुनः टंग जाती है  

           यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता


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