संजीवनी हिन्दी
संजीवनी हिन्दी
मेरे पहले रोने की 'कहाँ हैं, कहाँ हैं' में तुम्हीं हो हिंदी
मेरे अम्मा कहने की शुरुआत, तुम्हीं से हुई है हिंदी
पानी को 'मम' व दूध को 'बुबु' कहने में भी तुम ही हो हिंदी
अब तक कभी पढ़ा तुमको, पर मुझसे तुम जुड़ी हो हिंदी
अ के 'अनार' से ज्ञ के 'ज्ञानी' तक, स्वर-व्यंजन में बंधी हो हिंदी
अब कुछ कुछ जानी पहचानी सी लगती हो मुझको तुम हिंदी
माँ की आरती में तुम हो, शाला की प्रार्थना में भी तुम ही
मंदिर की अर्चना में भी तुम हो, चारों ओर तुम्हीं हो हिंदी
कुछ लोग तो कुछ और ही, गिटर-पिटर करते हैं
आपस में जब मिलते हैं तो, हल्लो-हाय करते हैं
हम तो हैं हिंदी वाले, हल्लो से हिल गए और हाय से डर गए
और तो और पिता को डैड, उनके क्या मार गए
क्या ऐसा इस भाषा में ,जो इतना सिर पर चढ़ती है
जिसने जन्मा, जिसने पाला, वो आज परायी लगती है
सारी दुनिया ही प्रथम रुदन में, कहाँ हैं, कहाँ हैं करती है
ये मधुर रुदन जग के कंठों में, हिंदी ही रति है
हिंदी से आरंभ हुआ, और अब हिंदी ही धूमिल है
उद्धार तेरा करने में केवल हिंदी ही काबिल है
विजय पताका फहरानी हो, और विकास का परचम
करो समाहित नितचर्या में, हिंदी को ही हरदम
देवनागरी कहते इसको, देव नगर में बोली जाती
पूजनीय हो जाते है वो जिनको यह हिन्दी आती
भावों के इक- इक स्पंदन, को स्वरूप देती है हिन्दी
जीवित करने में दिव्य संस्कृति, सक्षम है केवल हिन्दी
हम भरत वंशियों की युगों -युगों से, सहोदरा है हिन्दी
जीवन ललित कलाओं को भरने में, वत्स्ला है हिन्दी
बुझे-सिले, उर-अधरों को, दीप्तिमान कर देती हिन्दी
नागपाश से मुक्त कराने में, संजीवनी है हिन्दी
नागपाश से मुक्त कराने में, संजीवनी है हिन्दी
