STORYMIRROR

Kusum Kaushik

Tragedy

4  

Kusum Kaushik

Tragedy

मातृत्व

मातृत्व

1 min
348

बहुत कठिन है माँ बनना,

प्रसव काल की पीड़ा सहना

   पर वो सहती है, माँ बनती है

  क्यों कि उसे नहीं सहना है

  खुद को बांझ होना, सुनना।

आज जना है उसने सुत को

संग संग झेला दोहरी पीड़ा को

पर खुश है पा अमोलक गहना।

  जूझ रही थी वह जिस विपदा से

  नहीं कटी वह किसी तरह से

  पर फ़िकर नहीं पड़ जाए जो जाना।

अब तो लालन पास है मेरे

हरदम वह तो साथ है मेरे

निरख रहूँगी उसका मुखड़ा

 हालत उसकी आज यही है

 सबके मुख पर नहीं नहीं है

 मुश्किल है उसका बच पाना।

 पर देखो मातृत्व उसका

 बहा रही है पय स्तन का

 अब तो है बस क्षुधा मिटाना।

नहीं पता कितने दिन बाकी

सुत उसके को मिले ये छाती

चाहे जिससे वह सदा लगाना।

 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy