भारतीय नारी
भारतीय नारी
जब वे थे कुछ रुष्ट क्रुद्ध से,
मुझ पर आए एकदम झल्लाकर
बोले मुझ से दूर हट यहाँ से,
लगता है तेरा मुख जैसे ‘नर’।
सोच-सोच कर यही बात,
उस दिन रोयी थी पूरे दिन
हँसते-रोते बीत गए वर्ष बीस,
और अब आयें हैं यह भी दिन।
कुछ सखियां तो भांप गयीं दुःख,
और लगीं मुझे समझाने
एक तो कह गयी इतना तक,
कि तुम सा नहीं जहाँ में।
जैसे-तैसे खुद को समझाया,
बार-बार मुख दर्पण पर डाला
आँखें तो पहचान सकीं न,
पर मन ने यह स्वीकारा।
दोष दिया अपने को ही,
माना कि कुछ कमी हुई है
तभी तो मुझ बेचारी को
इस पड़ाव पर यह सजा मिली है
गम में डूबी रहती कब तक,
बाहर तो आना ही था
एक यही जीवन नहीं है
दूसरा जीवन भी तो जीना था
सोचा, नहीं सजूँगी अब,
बन के नर की नारी मैं
उनको तो दिखता है मुख ‘नर’ सा,
मेरी सूरत प्यारी में
बीत गए कुछ मास, कसमकस में,
भूल गयी मैं भी वह बात
आज अचानक हुआ कुछ ऐसा,
याद आ गयी फिर वही बात।
बोले मुझसे रुको जरा सा,
आज दिख रहा कुछ नयापन
क्योँ है? आज अचानक तुममे,
पहले सा इतना आकर्षण ।
रह गयी स्तब्ध, खड़ी मूरत सी,
फिर आयी जोरों से हँसी
सह न सकी तारीफ को अपनी
फिर ‘बिंदी’ की कथा कही ।
कुछ क्रोध था, कुछ प्रेम था,
और वक्त की भी थी कमी
बस कहा,उस दिन हुआ था क्या?,
जब मुख था ‘नर’ सा,पर वो मैं ही थी।
निष्कर्ष यही निकला कि,
हम तो हैं बस कठपुतली
जब थक गए ,वो पक गए,
नारी(कठपुतली) की डोर हटा डाली।
न वे दोषी न दुर्भाग्य हमारा
सहते हैं हम सब इतना कुछ
क्योंकि हम हैं “भारतीय नारी”।