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हरि शंकर गोयल

Abstract Tragedy Inspirational

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हरि शंकर गोयल

Abstract Tragedy Inspirational

मौत तेरे कितने रूप

मौत तेरे कितने रूप

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जिंदगी और मौत के बीच 

ये खेल छांव धूप है 

ऐ मौत तू बता दे 

तेरे कितने रूप हैं ? 

कभी तेज वाहनों के रूप में 

दबे पांव आती है 

कभी रेल की पटरियों पर 

आके पसर जाती है 

कभी आसमान से बिजली के रूप में 

आतंकवादियों की तरह टूट पड़ती है 

कभी बिजली के नंगे तारों में 

नदी के पानी की तरह बहती है 

कभी पुल और फ्लाइ ओवरों के टूटने से 

कई जिंदगियां तबाह कर जाती हैं 

कभी लैंड स्लाडिंग होने के कारण 

मौत अकस्मात आ जाती है 

कभी सुनामी, भूकंप बनकर 

ज़लज़ले के रूप में छा जाती है 

कभी बाढ़ तो कभी अकाल के रूप में 

अपना वर्चस्व हमें दिखलाती है 

कभी आत्मघाती मानव बम बनकर 

निर्दोषों पर कहर बरपाती है 

कभी सांप्रदायिक और जातीय दंगों में 

अपनी कलुषित मानसिकता दर्शाती है 

कभी बलात्कारी का वेश पहन कर 

किसी बच्ची को हवस का शिकार बनाती है 

कभी विश्वासघात कर के 

खून के रिश्तों का कत्ल कर जाती है 

कभी कोरोना जैसी महामारी बनकर 

सब कुछ अस्त व्यस्त कर जाती है 

तो कभी दिमागी बुखार, कैंसर बनकर 

अट्टहास कर के रौद्र रूप दिखाती है 

नवजात शिशु के रूप में जब 

जिंदगी अंगड़ाई लेने लगती है 

तब लड़की कहकर उसको 

खत्म करने की साज़िश बनने लगती है 

ऐ मौत बता, तू किस किस रूप में आती है 

और आकर के क्यों जिंदगी को खाती है 

हर तरफ तेरा साम्राज्य फैला हुआ है 

तुझसे तो मानवता भी घबराती है 



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