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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Romance Tragedy

4.9  

राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Romance Tragedy

तुम गये कहाँ, तुम कहाँ गये !

तुम गये कहाँ, तुम कहाँ गये !

2 mins
411


चुपके चुपके खो गए साज, मन की कोमल तरुणाई से ।

तुम गये कहाँ, तुम कहाँ गये, हो दूर मेरी तनहाई से ।।


व्याकुलता के सारे मौसम, आकर के मुझपर टूट पड़े ।

जब बंधन अहसासों वाले, बस खेल खेल में छूट पड़े ।

बरसात मेरी इन आँखों की, हो गयी दूर अंगडाई से....

तुम गये कहाँ तुम .......।।


मन एक नही तो फिर कैसे, सासों के गीत महकते थे ।

तन की निर्मलता नहीं बची, तो फूल कहाँ से खिलते थे ।

जो सच क्या है सुनना है तो, पूछो अपनी परछाई से...

तुम कहाँ गये तुम.....!!


क्यों बरसे बनकर कल चन्दन, जब तुमको ऐसे जलना था ।

क्यों स्वप्न दिए इन आँखों को, एक रोज इन्हें जब छलना था ।

आ जाओ मेरे इन सपनों को , ले जाओ चुभन की खाई से....

तुम गये कहाँ .............!!


बिस्तर सारे फूलों वाले, काँटों के जैसे चुभते हैं ।

अब मंद हवा के झोके भी, इस मन को बेहद खलते हैं ।

अहसास गये तुम बिखर गए, तिनका-तिनका हो राई से..

तुम गये कहाँ तुम.........!!


सावन आँखों से दूर नहीं, पतझड़ है मन मजबूर नहीं।

आँखों में घनी उदासी है, शायद ये नदिया प्यासी है ।

तुम गए छिनी हरियाली भी, जीवन की इस अमराई से....

तुम कहाँ...............!!


कुछ घाव अभी भी जिन्दा हैं, जो दिखलाने से दिखे नहीं ।

सुख चैन सभी लुट गए मगर, ये आंसू फिर भी बिके नहीं ।

ये अश्रु कमाए थे हमने, चाहत की इसी कमाई से ....

तुम कहाँ गए..............!!


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