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Hem Raj

Tragedy

4  

Hem Raj

Tragedy

दुहागन रोटी

दुहागन रोटी

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औरंगाबाद की पटरियों पर,                  

 बिखरी रोटी आज शर्मिंदा है।

तार -तार है इज्जत उसकी,                  

  खाने वाला ही न जिंदा है।


         खून -पसीना बहा कर उसने,                   

         मुश्किल से इसको पाया था।

         क्षुधा नाशनी इस महासुंदरी से,

         निवाला एक न खाया था।।


पटरी पर थी बिखरी रोटी ,

पटक रही थी अपने माथे।

जलमग्न नयन थे उस बेचारी के,

कहानी इश्क की बताते -बताते ।।

   

         "अपने बाबा को मेरे बारे,

          गांव में सुना था उसने बतियाते।

          फिदा हुआ था मुझ पर तब वह,

          मेरे कदमों में बाबा थे शीश नमाते।।


निकल पड़ा वह गांव छोड़कर,

शहर को मेरी तलाश में।

"मैं पा के रहूंगा, उस महा प्रेयसी को,'

क्या, ताकत थी उसके विश्वास में??


           वह ललचता रहा, मैं ललचाती रही,

           वह भटकता गया, मैं भटकाती गई।

           खूब थी खेली ठिठोली उससे,

           मैं भी कितनी मदमाती रही??


मुझे पाने को देख सखी,

क्या-क्या पीड़ा न उसने झेली है?

शायद मेरे गुनाहों की सजा है,

आज पटरियों पर अकेली है।।


         न जाने क्यों सड़कों से डर कर,

          पटरी पर वह आया था?

          आज सरकार ने नचाया उसको,

          जीवन भर मैंने नचाया था।।


धूप -धार की होकर मैंने,

पीछा उससे करवाया था।

वह भी मोह में पड़कर मेरे,

गांव से शहर को आया था।।


         मुझे पाने की जद्दोजहद में,

          उसने, खूब मेहनत से कमाया था।

          एक से बढ़कर एक करतब,

          दिखा कर, उसने मुझे रिझाया था।।


मैं बंध चली थी उसके पल्लू में,

मेहनत का लोहा मुझसे मनवाया था।

चल दिए अब बिन भोगे मुझको,

क्यों मेरी जिंदगी में आया था??


         बेवफा न कहना प्यारे मुझको,

         मैंने कदम- कदम पर सताया था।

          तेरे प्यार को हे प्रियतम प्यारे!

          जी भर कर मैंने आजमाया था।।


क्यों छोड़ दिया इसे हालत पर इसकी?

इसका जीवन क्या इतना सस्ता है?

वह रोटी है सिसक रही आज,

यह भी कैसी व्यवस्था है??


        महबूब मेरे क्या मिलन हुआ यह?

        देख रहा ये जमाना है।

        किस्मत में मिलन था इतना ही शायद,

        मौत तो महज एक बहाना है।।


हो गई हूं अछूत सी अब मैं,

कोई मानुष न मुझको अब खाएगा।

कौन मिलेगा प्रीतम ऐसा?

जो तुझ सा मुझे कमाएगा।।


         तू जा प्यारे मैं जी लूंगी,

         भूखा, चील-कौआ मुझे कोई नोचेगा।

          है कौन सहारा, बेसहारा का अब?

          जो मेरी इज्जत की इतनी सोचेगा।।


आज मैं समझी प्रीतम -प्यारे,

सच्चा प्यार क्या होता है?

तू जिया मेरे लिए, मरा मेरे लिए,

मुझे पाने को हल तक जोता है।।


         बाकी तो खरीददार है सब,

         चंद पैसा ही मोल मेरा होता है।

         वे क्या जाने कीमत मेरी?

          रोटी का मोल क्या होता है??


तेरी शहादत पर आज प्रिये,

मेरा जर्रा-जर्रा रोता है।

तेरा अरमान थी मैं, तेरा भगवान थी मैं,

मुझसे बढ़कर तेरा, और कोई न होता है।।


        खामोश है बिखरी रोटी बेचारी,

        आंखों से अश्रुओं का सोता है।

        किया प्रेम न जीवन में जिसने, वह क्या जाने?

         मिल कर बिछड़ने का, दर्द क्या होता है??



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