नारी
नारी
पुरुषों पर आश्रित इस जग की, मैं एक अबूझ पहेली हूँ
माँ हूँ कहीं पर, कहीं हूँ बेटी, कहीं बहन तो कहीं सहेली हूँ।
आओ सुनो तुम मेरी ज़ुबानी, मेरी ही ये दास्तां
मुझसे ही तुम आये हो, पहले हूँ मैं तुम्हारी माँ
महीनों तेरा बोझ उठाये, सहा है मैंने भीषण दर्द
अब मेरा ही घर छीन के मुझसे, तुम कहते हो खुदको मर्द ?
कहीं छोटी तो कहीं बड़ी हूँ, जुड़ा है तुझसे मेरा मन
बचपन हमने साथ गुजारा, मैं हूँ तेरी बहन।
हर पल तेरा भला मैं चाहूँ, बाँधु राखी का बंधन
तू ही मेरी इज़्ज़त लुटे, बोल करूँ कैसे मैं सहन?
फिर आती मैं बेटी बनकर, लाती खुशियों की सौगात
घर के सारे काम हूँ करती, घंटे चौबीस और दिन सात।
अब्बू को जन्नत नसीब कराती, उनके इंतकाल के बाद
जन्म से पहले मौत न दो तुम, सुन लो ये मेरी फरियाद।
घर-बार छोड़ तेरे संग हूँ आती, देने जन्मों तक तेरा साथ
सती रूप में यम से लड़ी मैं, मौत भी खाई मुझसे मात।
पीछे छोड़ हर दुःख और दर्द, सेवा करूँ तेरी दिन रात
सोच ज़रा तू हालत मेरी, छोड़े अगर तू मेरा साथ।
मीत मेरा बनकर तू देख, गम कर दूंगी सारे चूर
दुनियां मेरी बांटूंगी तुझ संग, होंगी बलाएं तुझसे दूर।
मदद को तेरी मैं आऊंगी, जब भी तू होगा मज़बूर
बुरी नज़र न डाल तू मुझपर, मत बन तू इतना क्रूर।
नारी हूँ मैं इस जग की, कदम मिलाऊँ तेरे साथ
ये सृष्टि एक ज़हन की भांति, हम दोनों हैं इसके हाथ।
जान है हाज़िर तेरी खातिर, चाहे तू इकरार तू कर
मुझे ओहदा मेरा दे दे, अब तो न इंकार तू कर
नारी हूँ मेरा सम्मान तो कर.