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Shweta Maurya

Tragedy

4.8  

Shweta Maurya

Tragedy

कृषि के मैदानों में

कृषि के मैदानों में

2 mins
496


हाय कृषक जूझ रहा,कृषि के मैदानों में,

फसलों की स्पर्धा खरपतवार, जल, सूर्य ऊर्जा से लेकर,

जूझ रहा कृषक कृषि मैदानों में।

उत्पादकता ही है प्रश्न मात्र उत्तरजीविका का।

हर सुबह - हर रोज नई आस और नया लक्ष्य साध,

घर से निकलता है कृषक खेतों की ओर,

है वो कितना दृढ़ और आत्मविश्वास से ओतप्रोत,

कहां से लाया इतनी हिम्मत,

है कृषक यह प्रश्न अनमोल।

फिर भी जीवन जीने के संघर्ष में,

भाव- विहलव हो कृषक परिवार तब रोते हैं,

जब खरपतवार ,आपदा जीत जाती है स्पर्धा फसली पौधों से,

घट जाता है जब उत्पादन फसलों का,

तो कृषक भाव-विहलव हो रोते हैं,

शुरुआत होती वहां से जब,

कृषि मैदानों खरपतवार और फसली पौधों की जड़-मिट्टी की स्थिति समान होती है।

हाय तब से कृषक जूझता है ,

कृषि के मैदानों में।

फिर भी कमजोर ना पड़ने देता खुद को बाजारों में।

सरकारें मूल्य निर्धारित करती अनाजों के,

फिर क्यों पिछड़ गए मौसमी फल-सब्जी मंडी की बाजारों में।

लघु कृषक हार जाता,

कर के न्याय कर्म कृषि के मैदानों में।

क्यों मजबूर आज भी कृषक कृषि मैदानों में।

है आज मजबूर लाचार खड़ा कृषक,

कृषि के मैदानों में।

भूखों मरने की नौबत अब आएगी,

ये सोच रहा खड़ा कृषि के मैदानों में।

जिस खेत में अपनी चमड़ी काली की है धूप में,

जिस खेत को खून पसीने से सींचा था,

आज सब कुछ हार कर ,

अनजाने में सींच रहे आंसुओं से,

जीवन जीने की संघर्ष व्यथा नहीं हुई पुरानी है,

हम तो मात्र कृषक परिवार की एक झलक दिखाने को आतुर हैं।

जिन्हें नहीं ज्ञान गेंहू, धान की पत्ती का,

वे बन बैठे हैं ठेकेदार किसानों के।

इस युग में हुआ तकनीकी का इजाफा है,

फिर भी न जाने कृषक की किस्मत में संघर्ष हजारों हैं,

हर बार टूट-टूट कर फिर -फिर खड़ा होता,

पछतावे के आंसू पोंछ, जोत रहा कृषक कृषि मैदानों को।


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