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Shweta Maurya

Tragedy

4.3  

Shweta Maurya

Tragedy

अंधविश्वास

अंधविश्वास

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 आधुनिकता के दौर में भी,

मानव मस्तिष्क कोअंधविश्वास ने आ घेरा है,

सोशल मीडिया पर भी मानव मन मस्तिष्क को धोने और अंधविश्वास को बढ़ावा देने के,

ठेकेदारों ने खूब उपयोग करना सीखा है,

आधुनिकता के दौर में सोशल मीडिया पर अंधविश्वास के ठेकेदारों ने डाला डेरा है।

अनर्गल इन बातों को तर्क देकर सोशल मीडिया पर खूब प्रसारित करना सीखा है,

मानव मन मस्तिष्क को आधुनिकता के दौर में अपने बेवजह के तर्कों से धो डाला है।

हुआ खूब दुरुपयोग प्रौद्योगिकी का,

कबीर, चंद्रगुप्त मौर्य और 21वीं सदी के वैज्ञानिकों जो रहे अंधविश्वास के खंडनकर्ता को भी,

इन अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले ठेकेदारों ने पीछे छोड़ा है।

खूब प्रचारित-प्रसारित होता है,

 सुबह खाली बर्तन देखने से दिन व्यर्थ चला जाता है।

विशेष कार्य को जाते समय ना बोलो किसी से,

भारतीय संस्कृति के लिए चुनौती बन जाता है।

बिल्ली काटे रास्ता तो इंसान आगे बढ़ने से कतराते हैं,

कुत्ता रोये तो अशुभ संदेश आता है।

अंधविश्वासी व्यक्ति जानवर की पीड़ा को अनदेखा कर,

स्वार्थवश उसे भगाता है,

नहीं सोचता कारण रोने का कारण,

जीव की पीड़ा को जाने-अनजाने और बढ़ाता है।

रोग-शोक में पूजा पाठ में जुट जाता है,

अंधविश्वासी व्यक्ति वही का वही रह जाता है।

अंधविश्वास के ठेकेदारों की टोने-टोटके को व्यर्थ के तर्क देकर,

सही साबित करने की भरकस कोशिश जारी है।

याद करो चंद्रगुप्त मौर्य का काल जब टोने-टोटके व अंधविश्वास को दूर भगाने को,

हुआ दूरदर्शी वैज्ञानिक प्रयास,

हुआ विकास अस्पतालों का।

वाराणसी में मृत्यु पाने वाला स्वर्ग को जाता है,

मगहर में नर्क पाता है।

सुन कबीर ने तोड़ा अंधविश्वास था।

पूछती हूं क्या व्यर्थ गई इनकी दूरदर्शिता,

क्या व्यर्थ चला जाएगा कबीर का बलिदान,

बुद्धिजीवियों का प्रयास।

आधुनिकता के दौर में सोशल मीडिया पर क्या खूब चल रही है,

अंधविश्वास की दुकान।


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