आईना
आईना
ए इंसान खड़ा क्या है, बढा कदम दर कदम,
सामने आईने में खुद को देख महसूस कर अपनी कमियां,
ये तू है,या कहो तेरी परछाई,
क्या ढूढते हो, इसमें अपनी मंजिल,
देख आईना मंजिल की तरफ बढ़,
ये तू है तू ही तेरी मंजिल,
बहुत हुआ जिंदगी की सच्चाई से यूं छिपना छिपाना,
न कहलाएं नालायक यूं ही,
इसलिए बहुत हुआ यूं खुद से मुंह चुराना,
कब तलक भागेगा अपनी सच्चाई से,
यूं ही अपना दामन बचाने को,
क्यों चाह तेरी पानी सा साफ बनने की,
छोड़ ये चाहत,
कोशिश कर आईना बनने की,
जो अपने सामने खड़े हर शख्स को उसका आईना दिखाए,
बन आईना परावर्तन कर,
हर बुराई को दूर करने की शक्ति विकसित करनी होगी,
नहीं जरूरत पानी सा साफ बनने की,
समुंदर में विलीन हो,
पानी खोता अपना अस्तित्व है,
कोशिश कर आईना बनने की।
आईना अगर चकना चूर भी हुआ तो,
गर्व से कहलाएगा की खुद को तपा आईना बनाया,
मैं वही जिसने तेरे अश्क में तुझे तेरी मंजिल दिखलाई थी,
थी बुराई जो भी वो टकरा कर मेरी वजह से तुझे छू न पाई थी,
आईना हूं टूट जाऊंगी,
पर गंदे पानी में मिल उसका हिस्सा नहीं बनूंगी,
आईना हूं दूसरों को उनका आईना दिखा कर रहूंगी।
हर शख्स को भारत में आईना बनने की प्रेरणा देकर ही सांस लूंगी।
कर रौशनी ये वादा की,
इस धरती पर आईना बनने की कोशिश में साथ निभायेगी।
आईना हूं आईना दिखा कर रहूंगी।