आत्महत्या- एक घोर अपराध
आत्महत्या- एक घोर अपराध
कौन हैं वो आत्मघाती
जो इतनी हिम्मत करते हैं
जीवन की परवाह नहीं, जिन्हे
आत्महत्या जो करते हैं ।।
दरकिनार कर हर रिश्ते नाते
ना भावनाओ की कदर ही करते हैं
कठिन श्रम से मिले जीवन को
क्षण भर में समाप्त, क्यूँ करते हैं ।।
शायद, आत्मग्लानि से दबे लोग,
कभी, कर्ज में ऐसा करते हैं
कोई प्रेम में धोखा खाए
अंजाम आत्महत्या को दे जाते हैं ।।
छिन्न -भिन्न रहते कहीं समाज से
नफरत इससे करते हैं
दया धर्म नहीं रहीं जीवन में
घुट-घुट जो मरते हैं , वही तो ऐसा करते हैं ।।
टूटे रिस्त्तो को जोड़ने की जो
हर संभव कोशिश करते हैं
बोझ सा लगने लगता जीवन, ना उम्मीद कहीं से पाते हैं
तब ऐसा कदम उठाते हैं ।।
हर स्थिति को बदलकर वो शायद, जीने कोशिश करते हैं
धर्म-कर्म में ध्यान लगा
कष्टो से हर लड़ाई वो लड़ते हैं
हार जाते जब परिस्थितियों से, शायद तभी वो ऐसा करते हैं ।।
कहने वालो का क्या वो तो कहते ही रहते हैं
उसके हृदय पर क्या गुजरती,
ना इसका आभास कभी करते हैं
ना जानने की भी कोशिश करते हैं ।।
दुनियाँ का सबसे घिनौना कर्म, ये
पर इसी में सूकून वो पाते हैं
जब हर दरवाजे से खाली लौटेते
तब इसकी शरण में जाते हैं ।।
किस दौर से गुजर रहे थे वो
लोग नई कहानी गढ़ते हैं
बेवजह के दोष लगाकर, लोग
चीर हरण सब उनके जीवन का करते हैं ।।
कबूल करते सब अपने गुनाह भी
ना ईश्वर भी क्षमा उन्हे करते हैं
आत्महत्या तो कर लेते
लेकिन हंसी का पात्र ही बनते हैं ।।