"दोगले लोग"
"दोगले लोग"
दोगले लोगो की ज़रा कमी नही है,ज़माने में
एक ढूंढोगे तो दो दिख जाएंगे तुझे आईने में
साफ नियत सबको लगती मुसीबत ज़माने में
साफ नियत आज खोई है,उजले तहखाने में
दोगले लोगो की बड़ी भरमार,आज ज़माने में
स्पष्ट वक्ता हुआ नाकाम खुद को समझाने में
ये दोगले लोग किसी के भी सगे नही होते है,
उसमें छेद करते,जो खाना देते मुँह तहखाने में
दोगले लोगो की ज़रा कमी नही है,ज़माने में
आज लोग छुरियां छिपाने लगे है,पहनावे में
कुछ परछाइयाँ तो इतनी दोगली हो चुकी है,
उन्हें ढूंढना हुआ मुश्किल,भीतर तहखाने में
लोग दूरी रखते है,अपने घर के घुसलखाने में
सच्चाई चुभने लगी है,आज फूलों के मुहाने में
दोगले लोगो की ज़रा कमी नही है,ज़माने में
दोगले लोग लगे हुए है,हमारे घरों को जलाने मे
फिर भी हम लोग खुश है,उनके मुस्कुराने में
दोगले लोग सबको ही भर्मित करने में लगे है,
फिर भी हम लगे हुए है,टूटी तस्वीर सजाने में
हम कितने नादान है,जिनसे घर हुए श्मशान है,
उन्ही दोगले लोगो को बता रहे मित्र,ज़माने में
जब लगेगी ठोकर,तब पता चलेगा कौन सही,
दोगले संसार के,दोगले लोगो के अफसाने में
दोगले लोगो की जरा कमी नही है,ज़माने में
तू दूर रह,दोगले लोगो के दिखावटी ज़माने से
रख पास उन्हें ही,जो खुद मिटे तुझे बचाने में
लाख दोस्तो से अच्छा,कर्ण सा मित्र सच्चा है
दोगली नीति से अच्छी हार है,सच बताने में
कोई कुछ भी कहे,तू दोगले लोगो से दूर रहे,
सर भले कट जाये,नही बिकना तू दो आने में
दोगले लोगो की ज़रा कमी नही है,ज़माने में
ऐसे लोग बैठे हर गली,हरनुक्कड़ चौराये पे
तू संभलना,दोगले लोगो से कभी न उलझना,
हर कुत्ते से उलझे,वक्त लगेगा,मंजिल तक जाने में
इन दोगले लोगो को इग्नोर कर तू ज़माने में
तू चन्द्र बन चमके,अंधेरी रात के अफसाने में