सत्ता की धुंध
सत्ता की धुंध
सत्ता की इस धुंध में देश कहीं खो ना जाए,
कुर्सी को पाने की चाह में कही देश पीछे ना छूट ना जाए।।
आओ एक नए भारत की रचना करते है,
मिलकर हम एक नया इतिहास रचते है,
भ्रष्ट सोच को खत्म करते है,
साफ सुंदर राजनीति का निर्माण करते है।।
सत्ता की इस धुंध में देश कहीं खो ना जाए,
कुर्सी को पाने की चाह में कही देश पीछे ना छूट ना जाए।।
देश की परेशानियों पर सियासत का पर्दा अब और नहीं,
हर ओर बिखरी है सियासत अब बस और नहीं,
चकाचौंध के मेले में किसी को काले धब्बे दिखे नहीं,
मुद्दे कुछ ऐसे है जिन्हें मंच मिले नहीं।।
सत्ता की इस धुंध में देश कहीं खो ना जाए,
कुर्सी को पाने की चाह में कही देश पीछे ना छूट ना जाए।।
बेरोज़गारी, मंदी और महंगाई आसमान को छूती दिख रही है,
सकल घरेलू उत्पाद की दर तेज़ी से गिरती दिख रही है,
विकास की दौड़ में हम कही पीछे ना रह जाएं,
देश का गरीब कही गरीबी में घुट कर ना मर जाए।।
सत्ता की इस धुंध में देश कहीं खो ना जाए,
कुर्सी को पाने की चाह में कही देश पीछे ना छूट ना जाए।।
बलात्कार और शोषण के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे,
सियासी बाबू हर मुद्दे पर चुप्पी साध कर बैठ है,
जनता देश की सवाल कर रही है,
और सरकार बस सियासत कर रही है।।