हिन्दी भाषी
हिन्दी भाषी
हमको खाना और कमाना है,
दुनिया से क्या लेना है
जैसे हीं लगी गर्दन में हाथ,
उठा लोटा वहां से भाग जाना है।
घर से भागे-गांव से भागे
मन में बसी एक हीं आस
हम तो भूखे हैं भोजन की तलाश
और चाहते हैं क्या….?
हमको खाना और कमाना है
राजनीति से हम दूर रहेंगे
बाबूओं का तलवा चाटेंगे
झूठे और मक्कार है हम
गंदी गली,बिन वातायन के कमरे
जीवन भर वास करेंगे हम…….
नेता कहते सरल श्रमिक हैं
पड़ोसी कहते हैं छोटोलोक
साहेब कहेंगे काजेर लोक
स्थानीय निवासी घृणा से भरकर
कहते राज्य के रक्तपिपासु जोंक हैं……
श्रम हमारा पर इनका होता है उत्थान
देखो-देखो हम कहलाते हैं बेईमान
हर पल हमसे पुछी जाती है
वर्तमान प्रांत में क्या है हमारा अवदान
हिन्दी भाषी हैं हंसकर रह जाते हम……
क्रप्टेड अलंकार से हमें सजाते
रिश्वत खाते और खिलाते हैं
पर बौद्धिक शिक्षा का धौंस दिखा
करोड़ों डकार जाते हैं वो
खैर हमको खाना और कमाना है
सब कुछ देखती हमारी आंखें
दुर्बलता कहें विरोध करना न सिखें
गालियां-थप्पड़ खाकर भी
झूठी सरलता का ढोंग रचाते हैं
तो क्या बाबुओं का तलवा…..
शक्ति प्रदर्शन कर पाते नहीं
बस पेट का रोना रोते हैं
वीरप्रस्विनी धरती के संतान हैं हम
लेकिन चींटी से डरते रहते हैं
क्योंकी हमको खाना और कमाना है…..
जब तक रहें गांव-गिराम में
बाभन-राजपुत-भूमिहार कहलाते
मानव से मानवता सदैव दूर रहें
छाया छू जाने मात्र से सत्रह बार नहाते
हिन्दी भाषी हैं खाना और कमाना……