मानव हूं मैं .................
मानव हूं मैं .................
जब आया यहां अपरिचित था सबसे,
अपना पराया पता नहीं केवल भूख प्यास है तबसे।
मेरे क्षुधा तृष्णा की पूर्ति स्वयं प्रकृति करती होगी, शायद अन्य को भी कोई ऐसी सेवा देती होगी।
समय बीतता गया आस पास को पहचानने लगा, धीरे-धीरे निकट को देखा वहां सभी अपना लगा।
सभी मुझे सुहाने सपने दिखाते, राजा बेटा-गुड़िया रानी आकाश में उज्ज्वल तारें की भांति अपना प्रकाश बिखेरेगी।
इन सबसे अनभिज्ञ सहपाठियों के साथ विद्यालय का आनन्द उठाता सपनों से दूर छल-कपट-स्वार्थ-कुटिलता से मित्रता कर ली।
शिक्षक-गुरूजन आदर्श देश का नागरिक बनने का पाठ पढ़ाया।
संग ही संग जीवन रक्षा हेतु बोली गई झूठ भी सत्य है स्वीकारने का मार्ग दिखाया।
मानवता की बात करता हूं कि सबको मानव होना चाहिए,
स्वयं को जीवित रखना है तो दूसरे की गला काटूं अन्यथा दूसरा मेरे गले दबाया।
जब अपनेपन पर भीड़तें हैं, मानव विस्मृत हो जाता है हर कोई दानव बन जाता है।
बीच राह लूट गई नारी आंखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर दर्शक मोबाइल भी डी ओ बनाते हैं।
गजब का तूफान मिडिया लाया मानव की मानवता आहत हुई।
कुछ पल का दौड़ शोर मचाते नेता मंत्री ने दया दिखाया, नारी शर्मशार,
अधिवक्ताओं की बहार घटना स्थल पर प्रमाण नहीं यहां बलात्कार हुआ।
इतनी सारी बातें किसी ने कुछ कहा नहीं बताया नहीं फिर मैंने जाना कैसे !
बड़ा आसान है इसका उत्तर एक दम चाकू और पके हुए खरबूजे जैसे।
क्योंकि मानव हूं मैं, मेरे इर्द-गिर्द जल-थल एवं प्रकाश-पवन सबमें मैं हीं हूं।
इन्होंने मुझे तन मन दिया, पंचेन्द्रिय देकर मुझ मानव को बसुधा के वक्ष स्थल पर गर्वित किया।
मेरी भावनाएं हैं संवेदनशीलता की अंगड़ाइयां मचलती है ईच्छा-आकांक्षा से परिपूर्ण एक मानव हूं।
मेरे स्वभाव आचार व्यवहार में स्थिरता नहीं रहती है मानव बन इस सत्य को स्वीकार किया।
मुझमें आए परिवर्तन देख अन्य मानव दांतों तले उंगलियां दबाते हैं।
लेकिन उन्हें क्या पता यह परिवर्तन हार्मोन्स के स्राव से होता है अर्थात हार्मोन्स हीं अहं अहंकार अहंकारी बनाता है। दया-दृष्टि, सहायता छिन लो अधिक से अधिक अर्जित करने का भाव जगाता।
ऐसा क्यों? क्योंकि मानव हूं मै।
मानव का अर्थ है स्वयं जीओ और औरों को भी जीने दो
यदि आप सफल नहीं हो पाये तो औरों को सफल होने दो।
जि हां शिकायत करने वाले शिकायतें करेंगे पर जो मानव है वह तो प्रशंसा करेंगे।
