STORYMIRROR

Mukul Kumar Singh

Inspirational

4  

Mukul Kumar Singh

Inspirational

कहां छिपा बैठा है सिने जगत के कलाकार।

कहां छिपा बैठा है सिने जगत के कलाकार।

2 mins
8

कहां छिपा बैठा है सिने जगत के कलाकार,

कविता एवं कहानियां लिखने वाले साहित्यकार।

किस होटल के कमरे में शराब के बोतलों के साथ, 

फोटो छाप रहे हो मिडिया के फोटो ग्राफर।

शब्दों को ढूंढ़ ढूंढ कर थक गये हैं पत्रिकाओं के पत्रकार,

चारों ओर अराजकता का फैला है प्रत्येक पल निर्बलों पर अत्याचार।

विरोध करने की हिम्मत कहां है मौन प्रतिवाद भी नहीं कर सकते,

छद्म धर्मनिरपेक्षता का जामा पहना अपने ही देश को कोसते।

स्वाभिमान के नाम पर नकली हाथी के दांतों पर कोलगेट पेप्सोडेंट लगाया,

अपने ज्ञान विज्ञान को खोखला कहते विदेशी ज्ञान के आगे निज कर फैलाया।

अपने भाई से करते हैं ईर्ष्या और जनमत को दिखाते विश्व बंधुत्व की बात,

जनता को शिक्षित करने वाले ही आतुर हैं देश व समाज पर हुकूमत।

अब हुकूमत भी क्या चीज है नरम नरम मांसल को नरपशु नोचते रहते हैं,

आंख रहते हुए भी अंधा बनकर दिवस के अंधेरे में टटोलते हैं।

चाहकर भी प्रतिवाद यहां रहना चाहता नहीं,

जानता है उसकी प्रतिवाद गूंगी बनकर भयभीत हो छिपी हुई है कहीं।

 पत्रकार तो पत्रकार तो पत्रकार होता है चाहे किसी से भी जुड़ा है,

राजनैतिक दलों के आगे स्वयं को बेच कर्तव्य को भूल एक पैर पर खड़ा है।

निरपेक्षता का क्या यही अर्थ है ईश वंदना के आड़ में सामाजिक एकता को तोड़,

एक पीड़ित के लिए बहती आंसू दूसरे शोषित के समय शब्दों को देते छोड़।

ऐसा कब तक चलाओगे-देश को कब तक जलाओगे,

अब भी देर नहीं हुई स्वयं को जगाओ बुराइयां तो बुराइयां है समान लेखनी दिखाओ।

क्रांति लाना है तो जनता जनार्दन के चरित्र को जगाओ-भ्रष्टाचार को मिटाओ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational