Shashi Prabha

Inspirational

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Shashi Prabha

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पतंग की डोर

पतंग की डोर

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एक पतंग की डोर किसी और के हाथ में थी

और वो छू रही थी आसमान की ऊंचाइयां । 

कितना ऊँचा जाना है किस दिशा में भरना है उड़ान 

डोर में ढिल दी जाती थी या फिर तान ।  

मगर एक दिन हवा का एक झोंका आया

मन में एक विचार कौंधा जगा एक विश्वास । 

सोचने लगी पतंग स्वयं क्यों नहीं बढ़ सकती आगे

हाथ बिना किसी के थामे अपने जीवन की डोर क्यों दूँ किसी पर छोड़ । 

पूरे विश्वास से लगाया जोर झटके से तोड़ दिया डोर

और लगा लिए दो पंख जाना है किस दिशा में  कर के फैसला।


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