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Dev Sharma

Inspirational

4  

Dev Sharma

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वो गुरु मेरे महान है

वो गुरु मेरे महान है

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जिस की डांट में भी प्यार छिपा

जो रोक टोक का सदा से पर्याय है

जिसने काली स्लेट से मित्रता सिखाई

जो सूरज उज्ज्वल भविष्य का दिखलाए है।।

      

नित ढाल बन कर जो अंग संग विचरे,

हर हाल मुझको लड़ना सिखलाये हैं।

कभी गलती को मेरी उजागर करते,

कभी मेरे हित सौ अपराध मेरे छिपाए हैं।।


कभी मित्र तो कभी गुरु का रूप धरे,

कभी मात-पिता का धर जिन रूप लिया।

धन्य धन्य उन गुरु के चरण कमल को,

जिन कृपा से पा मैंने ये रूप अनूप लिया।।


उन बिन ज्ञान कहाँ सब ओर अंधेरा अंधेरा था,

उस सानिध्य बिन कैसे मिट पाता ये अंधियारा।

सब लक्ष्य आंखों में ओझल ओझल ही रहता,

मिलता न जो तुम दया निधान का मुझे सहारा।।


सब अभियान विराम की दशा में होते,

विकास के सब पग थम के थम जाते।

तुम न जो जीवन दिव्य रस धार बहाते,

हम भटक भटक बन बर्फ कहीं जम जाते।।


ये धन, बल ,बुद्धि, ज्ञान और सब साधन,

हे गुरु देव साक्षात तुम्हारी ही तो देन है।

तुम बिन जीवन की भी कल्पना क्या होगी,

तुम ही धैर्य तुम ही साहस तुम ही मेरा चैन है।।


तुम युग प्यासों की प्यास का शीतल पानी,

तुम भवबन्धन ज्ञान, भक्ति अविरल धारा है।

तुम निर्रथक जीवन का अर्थ तुम ही सार हो,

जिस पर प्रभु हाथ धरे कहाँ कभी वो हारा है।।


जब जब भटका, घिरा मैं गहन तिमिर में,

तुम बन कर प्रकाश पुंज अंग संग खड़े दिखे।

तुम महान नील गगन से मैं अकिंचन मूर्ख सा,

जिस कोष तुम हो वो गुण तेरे भला क्या लिखे।। 


तुम अ अनपढ़ से सब का हाथ थामा,

निःसावर्थ ज्ञ ज्ञानी बनाकर ही आराम किया,

नमन बस कोटि कोटि चरणों में नमन मेरा,

अपनी मेहनत का कभी कौड़ी भी न दाम लिया।


      


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