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Dev Sharma

Inspirational

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Dev Sharma

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बेशक तू नारी है

बेशक तू नारी है

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हाँ हाँ बेशक तू इक नारी हूँ,

पर सत्य से कभी न तू हारी है।

तू त्याग तपस्या की साक्षात मूरत,

हर दिल जो खिले ऐसी इक फुलवारी है।।


तू कभी सब ओर फूल बनकर महके,

कभी सब सुख देती बन जाती तू डाली है।

कभी गङ्गा यमुना सी प्रेम रस धार बहाती

सब की करती देखरेख बन जाती माली है


कभी चंदन बन सुगन्ध सी तू महके,

कभी हरती  कष्ट निकंदन बन जाती है,

तू युगों युगों से संस्कृति द्योतक बनकर,

देख होता ह्रास स्वतः छाती तेरी तन जाती है।। 


तू ईश्वर हाथ रची अनुपम कृति है धरा की,

तुझ से ही आन अभिमान सब सुरक्षित है,

दुर्गा, सावित्री, लक्ष्मी कितने ही है नाम तेरे,

सृष्टि माँ रूप में तेरे आँचल में ही रक्षित है।।


तू छिपाए बैठी रहती अपने हृदय तल में,

शोला, शबनम, भयंकर चिंगारी ज्वाला भी।

तू ही सुरीली सरगम तू ही हर राग साज है।

तेरे कितने रूप कभी परवाज कभी मधुशाला भी।।


आज मैथिली शरण की तू वो नारी नहीं,

जिस के आंचल में दूध आंखों में पानी था।

आज तू हर क्षेत्र में अग्रणी बन खड़ी दिखे,

इंद्रा, कल्पना, उषा कभी नाम झांसी की रानी था।।


तू ही सब गुणियों में गुण बन कर विचरण करे,

तू ही धरा पे साक्षात कुल अखण्डित मर्यादा है।

तू ही सृष्टि हितकारी तू ही प्रचण्ड वेग हवा का,

तू ही दुष्ट संहारी तू हर पुरुष का भाग आधा है।।


तू पूजा तू भक्ति तू ही अमृत का प्याला है

तू ही सार प्रेम का तू ही प्रेम की दुलारी है।

तू ममता की सागर तू रिश्तों का भी संगम है,

तू ही हर भाई की अनुपम बहना प्यारी है।।


तेरे जितने रूप हे नारी! उतनी मेरी संज्ञाएँ नहीं,

तेरा गुण आलेख लिखूँ इतना मैं समर्थ  नहीं।

तू ईश्वर की अद्वितीय अकल्पनीय कृति ऐसी,

जिस का "देव" तेरे शब्दकोष मिलता अर्थ नहीं।।


               


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