असफलता
असफलता
कल फिर राह में खड़ी,
असफलता मिली थी,
मुस्कुराती, इठलाती,
अपनी जीत को जतलाती,
जैसे कहती हो मुझसे,
कि टूट चुके हो या कि,
बाकी है जज़्बा लड़ने का,
अपने हक़ के लिए भिड़ने का,
जमाने को बदल देने का,
अपनी जिद से लड़ के लेने का,
या की अब तुम भी हो,
इस बढ़ती भीड़ का हिस्सा,
जिसके पास न तो है,
दशा और न दिशा,
जो दिखा दो वो देखती है,
जो झुका दो तो लोटती है,
भक्त हैं या आसक्त हैं,
श्वेत इनका हुआ रक्त है,
सिर्फ कोसते हुए काहिल है,
खुद को बताते तो ज्ञानी है,
पर सच कहूँ तो जाहिल हैं,
बात तो चुभती हुई थी,
तो घात हृदय पर कर गयी,
लड़ने का जज्बा क्यों खोया,
ये बात अब घर कर गयी ,
हूँ क्यों में निर्भर किसी द्रोण पर,
जिसने काट अंगूठा मेरा लिया,
या किसी बाली के वश में,
जिसने बल मेरा आधा किया,
भूल बैठा क्यों भला मैं,
निज सामर्थ्य और अभिमान को,
अज्ञानता की भेंट मैं अब,
चढ़ने न दूं निज ज्ञान को,
ओ असफलता तू गुरु मेरी,
तुझ से संचित अनुभव मेरे,
तूने हैं कितनी बार तोड़े,
कब कब झूठे सब भ्रम मेरे,
ये तेरी ही तो सब है करनी,
खुद को हर बार तराशा है,
गिर गिर कर ये पैर थके,
पर आंखों में अभी तक आशा है,
युग बदलेगा, जग बदलेगा,
बदलेंगे अधिनायक भी,
एक दिन दे उपहार सफलता का,
तू बोलेगी हमको लायक भी,
बस उस दिन तक तुझको मुझसे,
ये वादा एक निभाना हैं,
मेरी हर एक कोशिश पर तुझको,
मुझको बस आजमाना है,
मुझको बस आजमाना है।।
