हिन्दी की प्रयोगशाला
हिन्दी की प्रयोगशाला
जाने कब से मन में ख्वाब हमने, था यही पाला
हिंदी की भी होती अपनी एक, सुंदर प्रयोग शाला
1.ककहरे की लड़ियों से जब, द्वार सज जाता
और दर पे एक रंगोली मात्रा की , मन लुभा जाता
2. खुलते खिड़कियों के पल्ले….दो विपरीत अर्थो में
एक मे रात ढलती तो, दूजा दिन, बुला लाता
….जाने कब से मन में ख्वाब हमने था यही पाला
हिंदी की भी होती अपनी एक, सुंदर प्रयोग शाला
3. होती इक घड़ी, दीवार पर, बारह खड़ियों की
समंदर की लहरों सा लय मिलता चला जाता
4.जले-कटे शब्दों की बना, एक गठरी
रख देते ऊँचाई पर कि कोई छू नहीं पाता
….जाने कब से मन में ख्वाब हमने था यही पाला
हिंदी की भी होती अपनी एक, सुंदर प्रयोग शाला
5. दादी नानियों का बतकही मंडल , इक होता
खाँसती-खुरखुराती कहानी का जंगल ...इक होता
6. उम्र पचपन सा चुलबुलाता बचपन ….इक होता
दादू नानू के किस्सों का दंगल....इक होता
7.और क्या होता इसमें ..सुनिए! हम बताते हैं …
अपनी प्रयोगशाला को.. चलिए! हम सजाते हैं …
8. व्याकरण की देवी की इक... मूरत बनाते हम …
शीश सजाते अलंकारों की ..रोली से हम
9. दोहे-चौपाई की माला... अर्पण कराते हम
भीने मुक्तकों से सुंदर ..पग पखारे हम
जाने कब से मन में ख्वाब हमने था यही पाला
हिंदी की भी होती अपनी एक, सुंदर प्रयोग शाला
10. और क्या करते हम प्रयोग ! अब बताते हैं
अपनी प्रयोगशाला को रचना शील बनाते हैं ..
11. देवनागरी माँ ..का... दरबार लगाते हम
अवधी, मैथिली मासी का... आसन सजाते हम
12.दुनिया के शब्दों को इसने रक्त दे पाला
नये कलेवर में खुद को हिंदुस्तानी बना डाला
13.दर्द सुनती है हिंदी…. दुःख बाँट है डाला
ग़म से हटा कर नुक्ता.. गम हल्का बना डाला
14.अपनी भाषा कहने में क्या शर्म है बोलो ?
अपनी भाषा सुनने का असली मर्म तो तोलो !
15.अपनी प्रयोग शाला में बस हिंदी का बोलबाला
पिलाते हिंदी और हिंदी के रसों का प्याला
पिलाते हिंदी और हिंदी के रसों का प्याला
