जाति धर्म विकास नहिं होइहिं
जाति धर्म विकास नहिं होइहिं
खरीद परोख्त सब सरकार बनाये,
सब सुन्दर सब भूषणधार बनाये,
जाति धर्म विकास नहिं होइहिं,
करत कर्म नहिं दिग्गज डोलहिं,
सुनहु वचन अब सब नर नारी,
नाई राम पद कमल पूजा थारी,
नहीं यह भानुकुल पंकज भानू,
भये गुमराह सब संत समाजू,
जे तुम्हारि सब सत्ता पावैं
हिन्दू मुस्लिम राग बनावैं,
कहि न सकत सत्य सनेहू,
जो कछु बोलौ प्राण हरेहू,
कहें जो सत्य समाजू,
बोलैं सब अनुचित बानू,
जाति धर्म सब सत्ता चढ़ावा,
कोई कछु नहिं लाभु भावा,
अब कहां रही अति प्रिय पाती,
ह्रदय लगाइ छुड़ावहिं छाती,
ऊंच नीच सब सत्ता को बनाये,
चोर उच्चकैः सब राजा कहलायें,
जाति-पाति सब कर्म बनावै,
साजबाज सब राग सुनावै,
पूजापाठ सब ईश मिलावै,
मानव सेवा धर्म निभावै,
नहीं प्रजा को भ्रष्ट न्ृप सुहाये,
हर योजना घोटाले का प्रारुप बनाये,
यह राग बन गया है वोटबैंक खरीदारी का,
लोकतंत्र बिकने लगा है दाम बेरोगारी का,
सत्ता शासन का अभिमान है,
लेकिन लोकतंत्र सब परेशान है,
न उनका नाम आये न उनकी शान जाये,
खरीद लो लोकतंत्र उनकी सरकार आये,
लोकतंत्र के महंगे चुनाव जब-जब किनारे आये हैं,
लोग तुम्हारी जाति धर्म के ठेकदार बनकर आये हैं।
