जो तुम चलो तो हम चले जो तुम बढ़ो तो हम बढ़े
जो तुम चलो तो हम चले जो तुम बढ़ो तो हम बढ़े
जो इस ठंड में भी देश के लिए
अपने सब कुछ लगाकर
सरहद हमारे लिए रूके है।
उन वीरों पर एक छोटी सी पंक्ति लिखता हूं।
ठंड जो बढ़ी तो हाथ भी गले
सास भी थमे कि मुंह में छाले भी पडे
रात हो रही की आंख भी झुके
लुटा कर नींद देश पर कुछ देश हित में गा चले
जो तुम चलो हम चले जो तुम बढ़ो तो हम बढे
ये देश का जो प्रेम है। वो देश पर ही रहे
ये जिंदगी जो देश कि वो देश पर ही रहे
परवाह हमें है देश की
हम देश के लिए रूके
जो तुम चलो तो हम चले
जो तुम बढ़ो तो हम बढे़।