खुली हवाओं की तरह
खुली हवाओं की तरह
तोड़कर हर जंजीरों को उड़ना चाहती हूं
खुले आसमान में……
ना हो कोई बंदिशे और ना ही
कोई अड़चने हों अब मुझ पर
बस उड़ना चाहती हूं खुले गगन में
परिंदों की तरह रहना चाहती हूँ
ना काटो मेरे परों को क्योंकि
मैं भी अब जीना चाहती हूं
मुस्कुरा कर फूल की तरह
हर रिश्तो को खुशबू की तरह
महकाना चाहती हूं….
कभी बेटी बनकर कभी मां बनकर
और कभी बहन बनकर सबके
ही सुख-दुख में साथ निभाकर
अपना फर्ज निभाना चाहती हूं
है! एक छोटा सा पैगाम जो
अब देना चाहती हूं मत करो
अपमान इतना कि अब मैं
झुक ना पाऊं…….
ऐसी हूं मैं वीरांगना कि कभी
चंडी या काली बन जाऊं
क्योंकि तोड़कर अब हर जंजीरों को
मैं खुली हवाओं की तरह उड़ना चाहती हूं।