सफलता का श्रेय
सफलता का श्रेय
कैसे कह दूं, खुद के बल पे मैंने सफलता पाई है!
अपनी विजय का श्रेय खुद लेना, यह तो जग- हँसाई है!
मेरी सफलता के पीछे कितनों ने अपना सर्वस्व लगाई है,
कितनों ने तम में राह हमें दिखाई है
,कितनों ने बुझते हुए दीये की लौ फिर से जलाई है,
कितनों ने गिरते हुए मुझे बार-बार ऊपर हमें उठाई है।
फिर भला कैसे कह दूं कि मैंने खुद के बल पर सफलता पाई है!
इस 'विजय श्री 'के लिए कितनों ने लड़ी मिलकर हमारे साथ लड़ाई है।
कैसे कह दूं-----------
टूटने पर भी कितनों ने खुद को जोड़कर रखना सिखाई है,
किसी ने प्यार दिया पिता का, कोई बना भरत- सा सहोदर भाई है।
किसी ने मां का लाड़-दुलार दिया, ओढ़ाई ममता की आँचल उसने,
की रिक्त स्थान की भरपाई है।
फिर कैसे कह दूं कि खुद के बल पे मैंने सफलता पाई है !
विजय का श्रेय खुद लेना यह तो सरासर अन्यायी है !
कोई प्रेमिका, हमसफ़र बन कदम से कदम मिलाई,
खाली दिल की की भरपाई है।
कोई सच्चा मित्र बन हौसला हर पग पर बढ़ाई है,
कोई बहन बन भाई की साथ निभाई है।
कैसे कह दूं कि खुद के बल पे मैंने सफलता पाई है,
खुद को विजय का हकदार बताना यह तो अहंकाराई है !
हम अकेले थोड़े ही मंजिल पा लिये, मिलकर सबने साथ लड़ी लड़ाई है।
कोई गुरु बन ज्ञान की मार्ग पकड़ाई,
कोई मार्गदर्शक बन जीवन की रीत सिखलाई है।
विरह और व्यथाओं ने ही मुझे उन्मुक्ति के प्रति ललक जगाई है ।
कमजोरियों को ही संबल बनाकर उर अंतर में उम्मीद की पौधा लगाई है।
खुद किया कुछ नहीं सिवाय मेहनत की, बस आशीर्वाद सबने बरसाई है।
अब परहित के लिए ही जीवन को उत्सर्ग किया मैंने,
लोगों का सहारा बनना ही,
हकों के लिए लड़ना ही उनकी बची अंतिम लड़ाई है!
