जीवन रूपी गहना
जीवन रूपी गहना
मीरा भी दिवानी कृष्ण की हुई थी,
राधा भी प्रेम में कृष्ण के रंगी थी।
गौरी संग ब्याह शिवजी का रचा था,
सीता संग जोड़ी राम की बनी थी।
प्रेम को दिशा हर पल मिली थी,
कोई दिल में बसा था तो कोई अपना हुआ था।
जीवन में महाभारत के युद्ध हुए थे,
तो जंग में अपने अपनों से बिछड़े थे।
कोई मोती पिरोते जीवन बिता गया,
कोई मोती बन जीवन अपना स्वर्ग बना गया।
प्रेम की परिभाषा में उलझा कोई था,
तो प्रेम के रस में अमृत कोई बन चला था।
खोए थे सभी जीवन की डोर तलाशने में,
तो कोई जीवन की तलाश में बन जीवन गया था।
अधूरी ख्वाहिशों में जीवन ढल सा रहा था,
पास से जाना तो ख्वाहिशें नहीं बस
एक अधूरा होने का एहसास भर सा लगा था।
कर्म केवल एक बोझ जीवन में बन गया था,
ख़ुशी नहीं केवल एक ज़िम्मेदारी रह गई थी।
रिश्ते ना मन के एहसास से जुड़े थे,
केवल एक नाता उम्र भर का बन चला था।
ख़ुशी ना बसी थी मन मंदिर में तेरे,
तेरी शोहरत में केवल तेरा बदन मुस्कुरा रहा था।
सुकून ना मिलता है तुझे गलियों में तेरी,
तू तो केवल भटकता है अंधेरों में बसी परछाई के पीछे।
थका हुआ हूँ कहके दो वक्त के सुकून की भीख माँगता है तू,
तेरी थकान है या आशियाना टूटने के डर से गिड़गिड़ाता है तू?
प्रेम के सागर में बहना चाहता है तू,
या प्रेम का इस्तिहार लगा जमाने में घुमना चाहता है तू?
ज़िंदगी जीना चाहता है या केवल एक दौड़ का हिस्सा बन जीतना चाहता है तू?
खुद में मिल जाना चाहता है या बस खुदा की रट लगाए
मंदिर मस्जिद की गलियों में माथा टेकना चाहता है तू?
दो पल ठहर जा, मिल जा तू खुद में,
ज़िंदगी मिली है बह जा तू रेत बन समंदर में इसके।
काट ना ज़िंदगी घराने में तू शिकायतों के,
आज है ये पल कल ना होगा ये सफ़र सुहाना।
