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Deepa Gupta

Inspirational

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Deepa Gupta

Inspirational

मुझको भी निश्छल बहने दो

मुझको भी निश्छल बहने दो

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बहती नदिया सबको भाये

मुझको भी निश्छल बहने दो,

एक बार सुनो तुम भी मेरी

मुझको भी अपनी कहने दो।


तुमने उड़ने को पंख दिये

तो राहें मुझको चुनने दो,

यदि नींद मुझे तुमने दी है

तो सपने अपने बुनने दो।


अपने जीवन का अक्षर बन

खुद मुझको वाक्य बनाने दो

आलापें ले सुमधुर कई

मुझे जीवन राग सुनाने दो ।


तुम बिन मैं पूर्ण नहीं फिर भी

आधे में ही खुश होने दो,

जीवन के दर्पण में मुझको

अपना प्रतिबिम्ब पिरोने दो।


मैं सौम्य बनूँ, या रूद्र बनूँ ,

ये निर्णय मुझको करने दो,

हॉं छिल जायेंगे पाँव मेरे

गिरने दो स्वयं सम्भलने दो।।


मैं मुस्काऊॅं या रो लूँ अब

ये वरण कदाचित मेरा हो,

जीवन की धूप जलायेगी

अनुभव की भट्टी जलने दो ।


मुझको भी यह आकाश खुला

आमंत्रण देता उड़ने को,

हॉं देर हुई, तो क्या ये दिन

यदि ढल जाये तो ढलने दो।


मैं पुस्तक का एक अंश नहीं 

मैं पुस्तक का एक आलय हूँ,

यदि मान सको तो मानो प्रिय

मैं स्वयं एक विद्यालय हूँ।


मेरे जीवन के उपवन में

जो मुरझायें हैं पुष्प उन्हें ,

खिल जाने का अवसर देकर

जल से फिर सिंचित करने दो।


मुझमें भी पुलकित इन्द्रधनुष

आतुर है नभ पर छाने को

मेरे मन का भीगा बादल

उत्सुक है रिमझिम लाने को।


मेरे मन के बचपन को तुम

झरबेरी के फल खाने दो

रखने दो नंगे पॉंव धरा पर 

भाव विभोर हो जाने दो ।


आज हृदय की विरह वेदना

इन नयनों को ढोने दो

करने दो रुदन जी भर कर

मन तृप्त मेरा तुम होने दो।


अब तक मैंने बस तुम्हें सुना

तुमने जो बोला वही चुना

पर खुद को लेकर खुद के संग

कुछ दूर टहल कर आने दो।


आओ बैठो सम्मुख मेरे

मुझको भी अपनी कहने दो, 

बहती नदिया सबको भाये

मुझको भी निश्छल बहने दो

मुझको भी निश्छल बहने हो ।।



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