वृद्वाश्रम
वृद्वाश्रम
एक लाल जब चला छोड़ने
अम्मा को वृद्धाश्रम
ऊपर से तो मुस्काती
लेकिन रोता उसका मन
भीतर ही भीतर वह खुद से
जाने क्या-क्या कहती
कभी हँसे तो कभी रो पड़े
असह्यय पीड़ा सहती
हर एक मास के विषय में सोचे
एक टक देखे जाये
और हृदय की विरह वेदना
किससे कहे सुनाये
प्रथम तीन मास तक बेटा
कुछ भी न खा पाई
जो खाती थी नाली पर जा
उल्टी करके आई
चौथे पाँचवें छठे महीने
में भी जी घबराया
बढ़ता पेट काम भी उस पर
कोई समझ न पाया
सात आठ और नवां महीना
रातों को हूँ जागी
और आज तू चला छोड़ने
मैं तो बड़ी अभागी।
नौ मास का कर्ज
बहुत अच्छे से दिया चुका
जा बेटा तू रहे सदा खुश
माँ की यही दुआ।