भूख है रोटी नहीं..!
भूख है रोटी नहीं..!
भूख
अजीब है इसकी दास्ताँ
एक को लगती नहीं
दूजे की मिटती नहीं..!
एक गोली खाये भूख के वास्ते
एक गाली और गोली खाता रोटी को..!
भूख है तो रोटी नदारद थाली से
रोटी जिसे मिले उसे इंतिज़ार भूख की
उफ़्फ़्फ़..!
नींद
एक को कहीं भी आ जाती
फुटपाथ पर बिछाकर अखबार
लगा हाथों का तकिया सो जाता
फूलों का सेज भी दूजे को काटता..!
सुख
एक तलाशता मंदिरा पीकर
वेश्यालय में..!
दूजा पा जाता अनायास ही
अपनों के छोटी छोटी ख़ुशियों में..!
एक तलाशे बड़े बड़े बहाने हँसने को
एक को आती ज़िंदगी के हर दाव पे मुस्कराना
कितनी अज़ीब है ना ये ज़िंदगी..!
हँसने / खाने / सोने / मुस्कराने को
बहाने क्यूँ बनवाती है..?