ताबीज़
ताबीज़
वो तमाम कोशिशें
और जद्दोजहद हमारी
उन्हें भुलाने की थी
मगर मुल्ले ने ताबीज में
उनका नाम भर कर दे दिया
गले में लटका कर रोज फिरती हूं
अहले सुबह माथे से लगाने को बताया था
ये कैसा अनोखा टोटका था
जिसे भुलाने की मिन्नतें थी
उसी का नाम भोजपत्र पर लिखा था
जो सुबहों शाम मेरे साथ था
अब इल्ज़ाम किस पर लगाऊं
वो मुल्ला बेनाम था
मेरा दिल बेकाबू हुआ
उन्हीं के पीछे दीवाना हुआ
क्योंकि ......
जिसे भुलाना था
वो आठों पहर दिल के पास था .....!