रिश्ते
रिश्ते
रिश्ते जो सम्हाले,
जतन से
लगता हैं,
इसके बाद,
और कुछ नहीं।
प्यार की गागर,
बह रही थी,
भर भर कर।
थोड़ी नाराजी,
जी! हाँ
क्या हुई,
रिसने लगे,
गागर से,
एक एक कर।
बस,
रह गया खाली भ्रम
सब कुछ होने का
कोशिश होती हैं,
कभी कभी,
गागर में झांकने की।
लेकिन अब
दिल नहीं मानता।
