अमावस्या के चाँद
अमावस्या के चाँद
तुमने अमावस्या के चाँद-सा छला मुझे
मैं पूनम का इंतजार करती रही
तुम ग्रहण संग पूनम को ले आए
और फिर कभी घटाओ में छुप गए ,
कभी बदली के पीछे से झाँक रहे
कभी तूफानों में छुपन-छुपाई खेल रहे
कितने दिन यह सिलसिले चलाए ।
आखिर एक दिन
तुम्हारी रोशनी के राज खुल गए ।
फिर तुम बेधड़क पूनम संग आने लगे
और मेरे आँगन में अमावस-से छा गए ।
बादल भी बेवफाई का भार सह न पाए
और नीर की बूँदें बन बरसने लगे,
मेरे तारे टिमटिमाना भी भूल गए
पर तुम आकाश पर राज करते रहे ।
तुम्हारे छल देख इन्द्र भी हताश हो गए
और
आसमान में इंद्रधनुषी रंग बिखेरने भूल गए।
ग्रहण में ग्रस्त सब रास्ता भटक गए ,
चाँद की प्यारी-सी दुनिया के सितारे
गर्दिश के चक्रव्यूह में फंस गए ।
चाँद रोज दर्शन देने आते पर
सितारों की चादर साथ न लाते
क्योंकि वो अपना स्वभाव भी भूल गए
घट-घट रोज एक दिन घट ही गए।
तब तारे नभ के सितारे बन गए
और
अब वो अहम् के गर्व का हाथ छोड़ देते
फिर धीरे-धीरे स्याह आकाश रोशन कर देते ।