प्रेम की सार्थकता - अनुज पारीक
प्रेम की सार्थकता - अनुज पारीक
मैंने प्रेम में हमेशा बिखरना चुना
और हर बार पूरा का पूरा बिखर गया
जहां प्रेम में लोग उलझ जाते हैं
या सुलझने की कोशिश करते हैं
वहीं हमने चुना बिखराव और सिमटाव
मैं हर बिखरता रहा और तुम संवारती रही
मैं जब - जब भी प्रेम में रहा
तब - तब इतना बिखरा कि,
खुद को संवारना मुश्किल रहा
मैं हर बार पूरा का पूरा बिखरता रहा
और तुम उतनी ही सहजता से मुझे सिमेटती रही
प्रेम में मेरा बिखर जाना
मेरी प्रेम की निशानी थी
और उसे पूरी सहजता के साथ सिमेट कर संवारना हमारे प्रेम की सार्थकता।