STORYMIRROR

AVINASH KUMAR

Tragedy

4  

AVINASH KUMAR

Tragedy

कितना अच्छा होता

कितना अच्छा होता

1 min
342

कितना अच्छा होता जो हम तुम कभी मिलते नहीं


वो जो एक भरम था कि हम में तुम में कुछ तो है कहीं

वो भरम नहीं बनता तो कितना अच्छा होता मेरे लिए

अब जो तुम दबे शब्दों में बोलती हो कि क्या फायदा

मुझे पहले पता चलता तो कितना अच्छा होता मेरे लिए

हमारी राहें पहले से ही अलग थीं ये जानना ज़रूरी था

अब लगता है ये बेहतर होता कि हम साथ चलते नहीं


कितना अच्छा होता जो हम तुम कभी मिलते नहीं


बदलना ज़रूरी था मैं इससे कभी इंकार नहीं करता

मगर इस कदर बदल जाओगे ये बात नहीं हुई थी कभी

मुझे मालूम था कि हमारे रिश्ते में ढलती शामें आएंगी

मगर जो ये रात आयी है इतनी तो रात नहीं हुई थी कभी

अगर मालूम होता मुझे कि अंधेरा मुझ पर इतना छायेगा

तो शर्त लगा सकता हूँ हमारे दरमियाँ सूरज ढलते नहीं


कितना अच्छा होता जो हम तुम कभी मिलते नहीं


एक जो मतलबी दुनिया है और एक ओर जहाँ तुम हो

अब दोनों में मुझे कुछ ज्यादा फ़र्क़ दिखाई नहीं देता

मैं हर रोज़ कह देता हूँ तुमसे अपने दिल की हर बात

वो बात अलग है कि तुम्हें मेरा कुछ सुनाई नहीं देता

तुमने तो यूँ ही कर दिए थे वादे ये अब पता चला मुझे

काश तुम वादों की कद्र जानते, ज़ुबान से बदलते नहीं


कितना अच्छा होता जो हम तुम कभी मिलते नहीं


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy