आ लौट चलें
आ लौट चलें
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एक बार पुनः चल दें उस पथ पर,
जहां महकता था ये बचपन
जहां चहकता था अल्लहड़पन
जहां सरस था अपना जीवन।
थे वृक्ष कई, और उनके ऊपर
गिल्लू की धमाचौकड़ी दिनभर
पत्तों की ओट में छिपी काकली
का बहता संगीत शाश्वत।।
थे अतरंगी से कई मित्रगण
हाथों में कंचे मुठ्ठी भर,
किन्तु मुख पर मुस्कान निरंतर
एक बार पुनः चल दें उस पथ पर ।।
थी गांव की पगडण्डी प्यारी
हरी घांस में रख नंगे पग,
मुख पर बिखरी शीतलता प्रतिपल
जब खाते झरबेरी केे फल
एक बार पुनः चल दे उस पथ पर ।।
थे एक दूजे के सुख में खुश
और दुख में बहता था अश्रुजल,
थी कड़वी बोली, पर मीठा मन
तितली के पंखों सा जीवन
आ लौट चले उस निर्मल पथ पर।।
