फ़ुरसते मिलती नहीं
फ़ुरसते मिलती नहीं
अब तो आदमजात में आदमियत मिलती नहीं।
डिग्रियाॅं मिलती हैं लेकिन सभ्यता मिलती नहीं।।1।।
नफ़रतों के इस शहर में इस तरह से खो गये।
झूठी हर मुस्कान है , सच्ची हॅंसी मिलती नहीं।।2।।
ख़ून का हर एक रिश्ता आज पानी हो गया।
अब सुदामा -कृष्ण-सी यहाॅं मित्रता मिलती नहीं।।3।।
चोरी, झूठ,फरेब में उलझे हुए हैं सब यहाॅं।
लाख कर लो कोशिशें भलमनसियत मिलती नहीं।।4।।
मान और सम्मान है बस अब दिखावें के लिए।
ढूंढने पर भी यहाॅं अब हस्तियाॅं मिलती नहीं।।5।।
है नज़ारे ही नज़ारे देखने को हर जगह।
इंसान की नज़रें यहाॅं इंसान से मिलती नहीं।।6।।
महफ़िलों में बैठने को वक्त काफी है मगर।
माॅं-बाप बूढों के लिए हमें फ़ुरसते मिलती नहीं।।7।।
तेरे दर पर आकर हमने यूॅं है खुद को खो दिया।
मुझमें तू ही तू बसा है, खुद में मैं मिलती नहीं।।8।।